Chhat Pooja 2023: छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? | छठ पूजा का इतिहास और विधि विधान
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भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुआयामी है जिसकी वजह से सम्पूर्ण विश्व धरातल पर भारत की एक अलग पहचान है। भारत के तीज त्योहारों को भी विश्व में एक अलग पहचान हासिल है। हमारे त्यौहार हमें अपनी सभ्यता से जोड़े रखने में एक महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए लोगों को छठ पूजा क्या है ?य डाला छठ पर्व क्या है या छठ पूजा क्यों मनाई जाती है ? Chhath Pooja kyu manai jati hai in Hindi,Chhat Pooja 2023 date, 2023 me chhath puja kab hai की जानकारी देने के लिए यह ब्लॉग पोस्ट लिखा गया है। उम्मीद करता हूँ आपको यह जानकारी जरूर अच्छी लगेगी। comment करके जरूर बताएं –
छठ पूजा य षष्ठी पूजा एक प्राचीन हिन्दू पर्व जिसे दिवाली के बाद छठे दिन मनाया जाता है। छठ पूजा, डाला छठ Dala Chath के नाम से भी प्रचलित है। डाला छट पर्व को बिहार प्रदेश का मुख्य पर्व मन जाता है किन्तु समय के साथ-साथ भारत के अन्य प्रदेशों जैसे झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न महानगरों में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। देश के साथ साथ विदेशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड ,मॉरिशस समेत कई अन्य विदेशी द्वीपों के उन भागों में जहां बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग जाके बस गए हैं वहाँ डाला छट का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
शब्द “छठ” संक्षेप शब्द “षष्ठी” से आता है, जिसका अर्थ “छः” है, इसलिए यह त्यौहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठे दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है।
“यह उत्सव सूर्य के प्रति कृतज्ञता दर्शाने का दिन है। सूर्य हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हमारे अस्तित्व का आधार ही सूर्य है। इसमें सूरज को अर्घ्य देना, यानी सूरज को देखना, आवश्यक है और यह सिर्फ सुबह या शाम के वक्त किया जा सकता है। अब सवाल उठता है, कब तक सूरज को देखने की आवश्यकता है? आप अपने हाथों में पानी धारण करते हैं और पानी धीरे-धीरे उंगलियों से निकल जाता है, तब तक ही सूर्य को देखा जाता है। सूरज को देखने से आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान होती है। इसलिए, पूजा मुख्य रूप से सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए की जाती है।” – गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी
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छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?| Chhath Pooja Kyun Manate hain
यह कहना गलत नहीं होगा कि देश की एक बड़ी आबादी को इस पूजा से जुड़ी मौलिक बातों को जानकारी नहीं है। इतना ही नहीं, जिन लोगों के घर में यह व्रत होता है, उनके मन में भी छठ पूजा एवं इसके व्रत को लेकर कई सवाल उठते हैं। छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? इसका जवाब उनके पास भी नहीं होता क्योंकि उन्हें कभी डाला छठ पर्व से जुड़ी कथा को नहीं सुना।
डाला छठ पर्व संतान की सुख-समृद्धि के लिए, संतान प्राप्ति के लिए मुख्यतः रखा जाता है क्यूंकि छठ मइया संतान देने वाली माता के नाम से विख्यात है। संतान की चाहत रखने वाली और उनकी कुशलता के लिए डाला छठ पर्व मनाया जाता है।
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। छठ पर्व पर उन्हें पृथ्वी पर जीवन को बहाल करने के लिए धन्यवाद किया जाता है।
छठ व्रत कौन रहता है और क्यों रहता है?
जब किसी परिवार में छठ पूजा Chath Pooja शुरू की जाती , तो यह उस परिवार का कर्तव्य हो जाता है कि छठ पूजा की परंपराओं को पीढ़ियों तक जारी रखें। यदि किसी वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस वर्ष उस परिवार में छठ पूजा नहीं की जाती। सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी अपनी औलाद की कुशलता के लिए यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष – बूढ़े – जवान सभी लोग करते हैं। यह व्रत कोई लिंग विशेष व्रत नहीं है।
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छठ पूजा से जुड़ी कथा | छठ पर्व का इतिहास
वैसे तो भारतीय संस्कृति में छठ पूजा से जुड़ी बहुत सी पौराणिक कथाओं का उल्लेख है। आइए एक एक कर के कथाओं के बारे में जानकारी लेते हैं
पहली कथा – इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में प्रियंवद नाम के राजा हुआ करते थे जिनकी कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के सलाह अनुसार संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने यज्ञ करवाया। आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रूप में प्रियंवद की पत्नी मालिनी को दी जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दुखद ये हुआ की वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ जिससे राजा प्रियंवद बहुत दुःखी हो उठा और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से उनकी पूजा करने को कहा ताकि उन्हें संतान की प्राप्ति हो और उनका दुःख दूर हो सके। राजा ने माता के कहे अनुसार पुत्र इच्छा की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया, जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि इसलिए संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए छठ की पूजा की जाती है।
दूसरी कथा – इस कथा के अनुसार महाभारत काल में छठ पर्व का आरंभ हुआ था। कहा जाता है कर्ण प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े रहकर सूर्य पूजा करते थे एवं उनको अर्घ्य देते थे। कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही। इसी कारण लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिये भी आज भी छठ में सूर्य को अर्घ्य देने परंपरा चली आ रही है।जिसके बाद इस पर्व की शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी।
तीसरी कथा – पांडव अपना सारा राज-पाठ कौरवों से जुए में हार चुके थे। महान ऋषि धौम्य की सलाह के अनुसार द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। जिसके फलस्वरूप पांडवों को उनका पूरा राजपाट वापस मिल गया था। इस अनुष्ठान के माध्यम से ही आगे चलकर , पांडवों ने हस्तिनापुर ( दिल्ली) मैं अपने राज्य को भी पुनः प्राप्त किया था।
चौथी कथा – प्राचीन ग्रंथों के अनुसार,अन्य महत्व भगवान राम की कहानी से भी जुड़ा हुआ।14 साल के निर्वासन के बाद शुक्ल पक्ष में कार्तिक के महीने में राम और उनकी पत्नी सीता ने उपवास किया था और सूर्य देव की प्रार्थना की थी। छठ पूजा तब से एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू उत्सव बन गया, जिसे हर वर्ष बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
भारतीय संस्कृति एवं पौराड़ीक मान्यता के अनुसार सूर्य भगवान की पूजा कुष्ठ रोग और बीमारियों को भी समाप्त करती है और परिवार की दीर्घायु और समृद्धि प्रदान करती है।
षष्ठी मइया या छठ मइया कौन हैं ?
छठ पूजा Chath Pooja में पूजी जाने वाली यह माता सूर्य भगवान की बहन हैं, लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं, ऐसी मान्यता है। सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर स छठी मइया को प्रसन्न किया जाता है ताकि उनकी कृपा बनी रहे।
देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। देवी कहती हैं यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मेरी विधिवत पूजा करें।
छठ पूजा 2023 में कब है ? | Chhath Pooja 2023 Date
Fri, 17 Nov, 2023 – Mon, 20 Nov, 2023 को पड़ रही है।
छठ पूजा कैसे की जाती है? | छठ पूजा की विधि इन हिंदी
डाला छठ पर्व में छठ पूजा की विधि बहुत अनुशासित है और किसी तपस्या से कम नहीं है। भारतीय सभ्यता के अनुसार हमारे देश में उगते हुए सूरज की आराधना करने का प्रचलन है किन्तु डाला छठ इकलौता ऐसा हिन्दू पर्व है जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है।
छठ पूजा चार दिनों की अवधि में मनाए जाती हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। आमतौर पर महिलाएं मुख्य उपासक होती हैं जिन्हें परवातिन कहते हैं।
पहला दिन – नहाय खाय :
सबसे पहले घर की सफाई करके उसे पवित्र किया जाता है।छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन नहाय खाय के साथ इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करती हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन करती हैं जिसके बाद घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू,चने की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।
दूसरा दिन – खरना :
कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं जिसे खरना कहा जाता है। शाम को चावल व गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है। पूजा करने के लिए केले के पत्तों का प्रयोग करते हैं। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। भेंट लेने के बाद, वे 36 घंटे बिना पानी के उपवास करते हैं।
तीसरा दिन – “शुक्ल शष्ठी”
“शुक्ल शष्ठी” के दिन में मिट्टी के चूल्हे पर छठ प्रसाद बनाया जाता है जिसमें ठेकुआ सबसे विशेष और बहुत स्वादिष्ट होने के कारण प्रचलित है। इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू ,प्रसाद व फल, लौंग, कच्ची हल्दी, अदरक, केला, नींबू, सिंघाड़ा, मूली एवं नारियल, सिंदूर और कई प्रकार मिठाइयों को लेकर बांस की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाती हैं।
सभी छठ व्रत एक पवित्र नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से स्त्रियां छठ के गीत गाती हैं। सूर्यास्त के बाद सारा सामान लेकर सोहर गाते हुए सभी लोग घर आ जाते हैं और अपने घर के आंगन में एक और पूजा की प्रक्रिया प्रारंभ करते है जिसे कोशी कहते हैं। यह पूजा किसी मन्नत के पूर्ण हो जाने पर या कोई घर में “शुभ कार्य होने पर की जाती है। इसमें सात गन्ने, नये कपड़े से बांधकर एक चित्र बनाया जाता है जिसमें मिट्टी का कलश या हाथ रखकर उसमें दीप जलाया जाता है और उसके चारों तरफ प्रसाद रखे जाते हैं।
चौथा दिन –
कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रत उसी जगह पुन: इकट्ठा होती हैं जहां शाम को अर्घ्य दिया था।
इसके बाद पुन: पिछले शाम की प्रक्रिया को दोहराया जाता है और कच्चे दूध से उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अंत में व्रत अदरक, गुड़ और थोड़ा प्रसाद खाकर पूर्ण करते है। इस तरह छठ पूजा संपन्न की जाती है।
निष्कर्ष :
मुझे उम्मीद है की आपको छठ पूजा क्या है? छठ पर्व क्यों मनाया जाता है? छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? Chath Pooja in Hindi छठी मैया कौन है? छठ पूजा की विधि, 2023 me chhath puja kab hai तथा छठ पूजा की कथा की जानकारी एवं डाला छठ से जुड़े सवालों के जवाब इस ब्लॉग आर्टिकल द्वारा आपको जरूर मिले होंगे।
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धन्यवाद!
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इतना गहरायी में बताने के लिए आपका शुक्रिया मित्र. आशा है कि इस तरह की कुछ और भी जानकारी मिलती रहेगी.
Bahut bahut badhai mitra…aaj se pehle kch na pta tha…🙏
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